आज हम श्री चैतन्य महाप्रभु के बारे में जानेंगे जैसे उनकी जीवनी (Who is Chaitanya Mahaprabhu in Hindi), आत्मकथाएं और 2021 में श्री चैतन्य महाप्रभु जयंती या गौरा पूर्णिमा कब है? और कई सारे ऐसे प्रश्न जो लोग इंटरनेट पर महाप्रभु के बारे में सर्च करते रहते है. चलिए समझते है.
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श्री चैतन्य महाप्रभु कौन है? (Who is Chaitanya Mahaprabhu in Hindi)
श्री चैतन्य महाप्रभु का जन्म सन्न 1486 की विक्रमी की फाल्गुनी पूर्णिमा को होली के दिन बंगाल के नवद्वीप नगर में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित जगन्नाथ मिश्र और माता का नाम शचीदेवी था.
इनके पिता जी सिलहट, बंगाल के रहने वाले थे. जो एक छोटा सा गांव था. और अब बांग्लादेश में है. ये नवद्वीप में पढ़ने के लिए आये थे. बाद में वहीं बस गये। वहीं पर इन्होने शचीदेवी जी से विवाह किया। ये एक ब्राह्मण नीलांबर चक्रवर्ती की बेटी थीं.
जगन्नाथ जी का परिवार श्रीहट्टा के धाकड़क्षिन गाँव में रहता था. उनके पैतृक घर के खंडहर आज भी बांग्लादेश में मौजूद हैं. शचीदेवी जी एक के आठ कन्याएं हुई और एक के बाद एक सबकी मृत्यु हो गयी. ऐसे में दोनों लोग बहुत परेशान और चिंतित थे.
इन्होने भगवान से बहुत प्रार्थना की जिससे इन्हे एक पुत्र की प्राप्ति हुई. जिसका नाम इन्होने विश्वरूप रखा. धीरे धीरे समय बीतने लगा. विश्व रूप जब दस साल का हुआ. तब शचीदेवी जी को एक और पुत्र की प्राप्ति हुई दोनों की खुशी का ठिकाना न रहा. तब तक दोनों लोग बूढ़े हो चले थे बुढ़ापे में एक और पुत्र को पाकर वे फूले नहीं समा रहे थे.
ये बच्चा बाकी सब की तरह नहीं था ये तेरह महीने माता के पेट में रहा. उसकी कुंडली देखते समय ज्योतिषी ने जगन्नाथ जी से कहा ये बालक सामान्य बालक नहीं है. ये आगे चलकर बहुत बड़ा महापुरूष होगा।
उनकी बात एक दम सत्य थी ये बालक आगे चलकर श्री चैतन्य महाप्रभु से नाम से प्रसिद्ध हुआ. छोटे में इनका नाम विश्वंभर रखा गया था। प्यार से माता-पिता उन्हें ‘निभाई’ कहते थे.
श्री चैतन्य महाप्रभु जीवनी (Chaitanya Mahaprabhu Biography in Hindi)
श्री चैतन्य महाप्रभु का जन्म चरितामृत के अनुसार 18 फरवरी 1486 की पूर्णिमा की रात, चंद्र ग्रहण के समय नबद्वीप (पश्चिम बंगाल) में हुआ था इन्हे बंगाल में लोग भगवान श्री कृष्ण का अवतार मानते है. महाप्रभु भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते थे. जिसमे वो संगीत और नृत्य का उपयोग करते थे जिसका बंगाल में वैष्णववाद पर गहरा प्रभाव पड़ा है.
वे अचिन्त्य भेडा अभेद के वेदान्तिक दर्शन के मुख्य प्रस्तावक भी थे. महाप्रभु ने गौड़ीय वैष्णववाद (अर्थात ब्रह्म-माधव-गौड़ीय सम्प्रदाय) की स्थापना की थी. उन्होंने भक्ति योग का विस्तार किया और हरे कृष्ण महा-मंत्र के जप को लोकप्रिय बनाया. उन्होंने शिक्षाशक्तिम् (आठ भक्ति प्रार्थना) की रचना की। ये हिन्दू धर्म को मानते थे.
अपने रंग के कारण इन्हे गौरांगा या गौरा भी कहा जाता है. नीम के पेड़ के नीचे पैदा होने के कारण उन्हें निमाई भी कहा जाता है.
श्री चैतन्य महाप्रभु की मृत्यु मात्र 48 वर्ष की उम्र में 14 जून 1534 को पूरी, ओड़िसा में हुई थी.
बहुत कम उम्र से कृष्ण के नामों के जप और गायन के लिए चैतन्य के स्पष्ट आकर्षण के बारे में कई कहानियाँ भी मौजूद हैं. जैसा कि मैंने आपको बताया कि इनके जन्म के समय तक इनके पिता जी बूढ़े हो गए थे कुछ समय के बाद उनका निर्धन हो गया.
अपने दिवंगत पिता का श्राद्ध समारोह करने के लिए गया, बिहार जाने के दौरान, चैतन्य अपने गुरु, तपस्वी ईश्वर पुरी जी से मिले. जिनसे उन्होंने गोपाल कृष्ण मंत्र के साथ दीक्षा प्राप्त की. यह मुलाकात और ज्ञान चैतन्य के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन शाबित हुआ.
और बंगाल में उनकी वापसी पर उनके अचानक हुए ‘हृदय परिवर्तन’ को देखकर सभी दंग रह गए और जल्द ही चैतन्य नादिया के भीतर अपने वैष्णव समूह के प्रमुख नेता बन गए.
बंगाल जाने के बाद और स्वामी केशव भारती द्वारा संन्यास ग्रहण करने के बाद, चैतन्य ने कई वर्षों तक भारत के अलग अलग जगहों की यात्रा की, लगातार श्री कृष्ण के दिव्य नामों का जाप किया.
उस समय उन्होंने बारानगर, महिनगर, अतीसारा और अंत में, छत्रभोग जैसे कई स्थानों को पैदल यात्रा की थी. छत्रभोग वह स्थान है जहाँ देवी गंगा और भगवान शिव मिले थे,
उन्होंने छत्रभोग के अम्बुलिंग घाट पर साथियों के साथ महान कोरस-जप (कीर्तन) के साथ स्नान किया. एक रात रुकने के बाद उन्होंने स्थानीय प्रशासक रामचंद्र खान की मदद से नौका से पुरी के लिए प्रस्थान किया. उन्होंने अपने जीवन के अंतिम 24 वर्ष ओडिशा के पुरी में राधाकांत मठ में भगवान जगन्नाथ के महान मंदिर के शहर में बिताए.
श्री चैतन्य महाप्रभु की आत्मकथाएँ (Chaitanya Mahaprabhu Biography in Hindi)
चैतन्य महाप्रभु के जीवन के जीवन के बारे में बताने कई आत्मकथाएँ उपलब्ध हैं. जिनमें से सबसे प्रमुख हैं कृष्णदास कविराजा की चैतन्य चरितामृत है जिसे बंगाली में लिखा गया था. लेकिन आज के समय में ये अंग्रेजी भाषा में साथ साथ अन्य कई भाषाओ में मौजूद है.
अन्य आत्मकथा लोचन दास द्वारा लिखी गयी चैतन्य मंगला है. ये संस्कृत और बंगाली भाषा में लिखी हैं. इनके अलावा, कई अन्य संस्कृत आत्मकथाएँ भी हैं.
कवि कर्णपुरा द्वारा चैतन्य कार्तमत्ता महावाक्य और मुरारी गुप्ता द्वारा श्री कृष्ण चैतन्य कारिता महा-काव्य भी हैं. चैतन्य लीला के लेखक कृष्णदास कविराज है.
frequently asked questions (FAQ)
2023 में श्री चैतन्य महाप्रभु जयंती या गौरा पूर्णिमा कब है?
2023 में श्री चैतन्य महाप्रभु जयंती या गौरा पूर्णिमा March 7, 2023, Tuesday को है.
श्री चैतन्य महाप्रभु जयंती क्यों मानते है?
श्री चैतन्य महाप्रभु जयंती उनके जन्मदिन पर गौरा-पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है.
‘गौरांग’ का क्या मतलब है?
‘गौरांग’ का मतलब है ‘स्वर्ण जैसा’, ये श्री चैतन्य महाप्रभु का दूसरा नाम है. जिन्हें गौडीय मठ के अनुसार इन्हे ‘श्रीकृष्ण’ का अवतार माना गया है.
श्री चैतन्य महाप्रभु किसे अपना गुरु मानते थे?
श्री चैतन्य महाप्रभु तपस्वी ईश्वर पुरी जी को अपना गुरु मानते थे.
श्री चैतन्य महाप्रभु धरती पर कितने साल रहे?
श्री चैतन्य महाप्रभु धरती पर 48 साल रहे?
जगन्नाथ पुरी में श्री चैतन्य महाप्रभु इतने लंबे समय तक क्यों रहे?
महाप्रभु ने अपने जीवन के अंतिम 24 वर्ष ओडिशा के पुरी में राधाकांत मठ में भगवान जगन्नाथ के महान मंदिर वाले शहर में बिताए. जहा उन्होंने हर एक व्यक्ति को हरे कृष्ण महामंत्र का जाप करने के लिए प्रेरित किया और इस तरह कृष्ण के प्रेम में विलीन हो गए.
श्री चैतन्य महाप्रभु के अनुसार सर्वश्रेष्ठ भक्त कौन है?
श्री चैतन्य महाप्रभु के सर्वश्रेष्ठ भक्त श्री अद्विता आचार्य थे.
श्री चैतन्य महाप्रभु किस वर्ष उड़ीसा आये थे?
श्रीचैतन्य महाप्रभु सन्न 1510 में उड़ीसा के पूरी में आये थे.
Conclusion
आज हमने श्री चैतन्य महाप्रभु के बारे में जाना जैसे श्री चैतन्य महाप्रभु कौन है?(Who is Chaitanya Mahaprabhu in Hindi), 2021 में श्रीचैतन्य महाप्रभु जयंती या गौरा पूर्णिमा कब है?श्री चैतन्य महाप्रभु जीवनी (Chaitanya Mahaprabhu Biography in Hindi), श्री चैतन्य महाप्रभु की आत्मकथाएँ (Chaitanya Mahaprabhu Biography in Hindi) और FAQ आपको यदि ये पोस्ट पसंद आयी है तो इसे शेयर जरूर करे